Tuesday, August 11, 2009

भगदड़ क्यूँ मची है... दाल में कुछ काला है!

क्या स्वाइन फ्लू सच में इतना खतरनाक है जितना मीडिया में प्रोजेक्ट किया जा रहा है? चाहे प्रिन्ट हो या इलेक्ट्रॉनिक, स्वाइन फ्लू ही छाया हुआ है। अब तक कुल सात मौतें हुई हैं और करीब सात सौ मामले रिपोर्ट किये गये हैं। मैं ये नहीं कहता कि ये कोई मामूली बिमारी है, जिसे हल्के में लेना चाहिए। इलाज़ ज़रूर हो और प्रॉपर ढंग से हो, पर यूँ ‘पैनिक’ क्रिएट करना कितना उचित है?

मुझे आशंका है कि कहीं ये किसी मल्टी-नेशनल कम्पनी के किसी प्रॉडक्ट को बेंचने की चाल तो नहीं...! कोई कॉन्सपिरेसी तो नहीं...! तभी WHO द्वारा आनन-फानन में ‘एड्‌वाइस’ भी जारी कर दी गयी कि ये महामारी (epidemic) है। ‘टेमीफ्लू’ नामक दवा की शॉर्टेज है। स्वास्थ्य मन्त्री लगातार विवादास्पद बयान दे रहे हैं। कभी रिदा शेख को जिम्मेदार ठहराते हैं, तो कभी अपने बयान से मुकर कर माफी माँगते हैं।

ज़रा दिमाग पे ज़ोर डालें तो हर साल अकेले ईस्टर्न यू.पी. में दिमागी बुखार (इन्सेफ्लाईटिस) से सात-आठ सौ लोग मर जाते हैं, लेकिन इसका कोई पैनिक नहीं होता, कोई सलाह (advisory) जारी नहीं होती।

क्यों भला? इसमें ग्लैमर नहीं है। आम आदमी के मौत के क्या मायने? मरता है तो मरे...। न टीवी पर कोई खबर आती है, न संसद में ही कोई चर्चा होती है। यही कहानी साल दर साल दुहरायी जाती है। और न जाने कबतक दुहरायी जाती रहेगी।...!

और हाँ, स्वाइन फ्लू का इलाज बाबा रामदेव ने बताया है- प्राणायाम, कपालभाती, भस्त्रिका। दवा भी उन्होंने बतायी है- “गिलोये” और “तुलसी”, जो सब जगह उपलब्ध है।

पर इसकी चर्चा कम है क्योंकि इसमें MNCs का फायदा नहीं है। सरकारी तन्त्र का फायदा नहीं है।

सो, जबतक ऐसा एट्टीट्यूड नहीं बदलेगा, हम यूँ ही स्वाइन फ्लू जैसे पैनिक झेलते रहेंगे।


1 comment:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपकी आशंका निराधार नहीं है। बहुत बड़ी- बड़ी समस्याएं और भी हैं इस देश में जिनपर कॊई ध्यान नहीं जाता इस मीडिया का। सुअरबुखारा पर सभी दौड़ पड़े हैं, भगदड़ ही मची हुई है।